20 जनवरी, नई दिल्ली: वैश्विक जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच देश में कृषि क्षेत्र में पानी की किल्लत सबसे बडी समस्या बनकर सामने आ रही है। तापमान में बढ़ोत्तरी और विपरीत मौसमी परिस्थितियों ने धान और गन्ना जैसी फसलों के उत्पादन को प्रभावित किया है। विश्व मौसम संगठन के अनुसार बदलती मौसमी परिस्थितियों के कारण तापमान बढ़ने से गन्ने की फसल के पकने के समय में भी अन्तर आएगा जो आगे चलकर उत्पादन पर असर डालेगा।
जलवायु परिवर्तन से गन्ने की फसल पर पडने वाले प्रभाव के मसले पर मीडिया से बात करते हुए इंटरनेशनल कमीशन ऑन इरिगेशन एंड ड्रेनेज के निदेशक सचदेव सिंह ने कहा कि तापमान बढ़ने से भी जल का स्तर काफ़ी नीचे जा रहा है, जिससे गन्ने की खेती पर असर पड़ रहा है। खेती में जल के अंधाधुंध दोहन को रोककर हमें समय रहते जल संरक्षण तकनीकों को अपनाने की ज़रूरत है। कम पानी में गन्ने की खेती करने के नवीन प्रयोग को अपनाकर जल की एक एक बूँद को सहेजने की की ज़रूरत है। यूरेपियन देशों में कम पानी में गन्ने की खेती कर अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित चीनी की बुद्दा वाटर टैक्नॉलोजी के कन्सल्टेंसी के सीईओ हावर्ड लून ने कहा कि आज मॉइश्चराइज केन फ़ार्मिंग की ज़रूरत है। इस तकनीक में खेत को सूखा रखते हुए पौधों के पास टपक सिंचाई से सिर्फ नमी देकर गन्ने की सिंचाई की जाती है। इससे पानी की 85-90 फ़ीसदी बचत होती है।
नेब्राक्सा विश्वविद्यालय, यूएसए के वाटर एंड फूड डायट्री ग्लोबल इंस्टीट्य़ूट के निदेशक क्रिस्टोफर एमयू नेले ने कहा कि गन्ने की खेती में 70-80 फ़ीसदी पानी की अनावश्यक बर्बादी होती है। दुनियाभर के वैज्ञानिक मिमिमन वाटर में मैग्जीमम क्रॉप लेने की विधियाँ अपनाने पर ज़ोर दे रहे हैं ताकि पानी की प्रति हैक्टेयर ज़रूरत कम हो और प्रति हैक्टेयर गन्ने की खेती बढे।
जल संसद के प्रतिनिधि, सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि किसान अपने खेतों में गन्ने की फसल को पानी से लबालब करके सिंचाई करते हैं जबकि यह ग़लत है। इससे गन्ने के बजाय खेत में पानी की अनावश्यक बर्बादी हो जाती है। इसके लिए किसानों को जागरुक करने की ज़रूरत है। किसानों को ड्रिप सिंचाई और फव्वारा सिंचाई पद्दतियों को अपनाने के लिए जागरुक करने की ज़रूरत है। किसानों को इसके लिए ऋण सुविधाएँ देने की ज़रूरत है। किफायती सिंचाई पद्धतियाँ देने की ज़रूरत हैं ताकि वो ज़्यादा से ज़्यादा इस तरह की कृषि प्रौदयोगिकी को अपनाएँ और लाभान्वित हो। किसानों के बीच लघु सिंचाई पद्धतियाँ प्रचलित होने से नवाचार आधारित खेती होगी और पौधे की जड़ तक पानी पहुँचने से पौधे की बढ़वार ज़्यादा होती है, उत्पादन भी बढ़ता है और व्यर्थ पानी की बर्बादी रुकती है।
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