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श्रावस्ती, 9 मई: 12 मई को जिन सीटों पर मतदान होना है उसमें उत्तर प्रदेश की तराई बेल्ट की श्रावस्ती लोकसभा सीट भी शामिल है। इस सीट पर किस तरह की चुनावी लड़ाई है और गन्ना किसानों के क्या है मुद्दे ये जानने की कोशिश की चीनी मंडी संवाददाता ने। वैसे तो श्रावस्ती का नाम रामायण काल से लेकर बुद्धकाल तक की तमाम गौरवशाली गाथाओं से जुडा है लेकिन ये क्षेत्र अक्सर गन्ना किसानों की समस्याओं के मुद्दों के चलते होने वाले आंदोलनों के लिए भी चर्चित रहता है। बलरामपुर लोकसभा का अस्तित्व समाप्त होने के बाद 2009 में श्रावस्ती नाम से नई लोकसभा का गठन हुआ। श्रावस्ती लोकसभा बनने से पहले बलरामपुर में जहां पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख ने अपना परचम लहराया। उस दौर में गन्ना किसानों को बहुत ज्यादा समस्या नहीं होती थी ,क्योंकि उस दौर के नेता किसानों के बीच से आते थे और उनकी समस्याओं को गंभीर से लेते थे। लेकिन आज स्थिति कुछ और है, इस इलाके में गन्ना मुख्य नकदी फसल है, तो बलरामपुर की चीनी मिल यहां की प्रमुख पहचान है। इस सीट पर बीजेपी ने अपने निवर्तमान सांसद दद्दन मिश्रा पर भरोसा जताया है। मिश्रा का कहना है कि वो खुद एक किसान है और गन्ना किसानों की समस्याओं को लेकर हर बार जब भी क्षेत्र में आते है गन्ना किसानों के साथ चीनी मिल के अधिकारियों के साथ बैठक करते है, यही वजह है कि यहां पर जब भी गन्ना पैराई सत्र चलता है तब हमारी समन्व्यता के कारण किसानों और मिल प्रंबधकों के बीच किसी तरह की मनमुटाव की ख़बरें नहीं आती है।
इस संसदीय क्षेत्र में गठबंधन के कोटे से बसपा प्रत्याशी शिरोमणि वर्मा चुनावी मौदान में है। उनका कहना है कि प्रदेश और केन्द्र में भाजपा की सरकार है। वो सिर्फ व्यापारियों का ध्यान रखती है गन्ना किसानों का नहीं।
हमने बात की लक्ष्मनगर के किसान रोहिताष से, उन्होंने बताया कि हमारे यहां चीनी मिलें राजनेताओं की कठपूतली बनी हुई है।
जब भी गन्ना की फसल तैयार होती है तो हम पैराई के लिए ले जाते है तो परेशान होने के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता। लक्ष्मननगर गन्ना केंद्र पर गन्ना उठान के लिए आने वाले किसानों की परेशानियाँ किसी से छुपी नहीं है। यहां का चीनी मिल की कार्यप्रणाली संदेह के दायरे में रहती है। नेता फोन कर देते है उसकी ही चीनी मिल वाले सुनते है।
गन्ना किसान जेठाराम ने बताया कि चिलवरिया चीनी मिल के प्रंबधकों ने केवल बहराइच के किसानों को सहयोग किया हमारा नहीं। श्रावस्ती के किसानों की उपेक्षा हुई और बहराईच के किसानों को पर्चिय़ां दी गयी। हमारी किसी ने एक नहीं सुनी अब वोट का समय है तो नेता दिखाई देने लगे है।
कसियारपुर के किसान मंगत सिंह ने बताया कि इस बार हम लोगों को समय से पर्ची न मिलने से गन्ने की हम समय पर बुआई भी नहीं कर पाये क्यों कि हम लोग गन्ना नाप तौल केन्द्रों और चीनी मिलों के ही चक्कर लगाते रहे जिससे समय खऱाब हुआ।
ग़ौरतलब है कि यूपी की 80 लोक सभा सीटों में 25-30 सीटें गन्ना प्रभावित जिलों मे है और वहाँ का राजनीति गन्ना किसानों के मुद्दों पर ही तय होती है इसलिए राजनीतिक दलों के लिए गन्ना किसान बड़ा वोटबैंक रहते है और उनको रिझाने के लिए नेतागण चुनावों के दौरान एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर ख़ुद किसानों के बड़े हिमायती होने का दावा करे रहते है।