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उत्तर प्रदेश के कई चीनी मिलों का कोटा कम, खेतों में सूख रहा गन्ना
लखनऊ : चीनी मंडी
उत्तर प्रदेश सरकार के गन्ना किसानों को राहत देने के तमाम प्रयासों के बावजूद किसानों को राहत नहीं मिल पा रही है। मिलों की मनमानी किसानों का चैन छिन रही है। गन्ना अब भी खेतों में खड़ा सूख रहा है। सूखे गन्ने को देखकर किसानों की आँखे नम हो रही है, लेकिन मिल मालिक और जिला प्रशासन टस से मस नही हो रहा है। सरकार के इस रवैय्ये से किसानों में आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है।
इस वर्ष जनपद का कोई ऐसा ब्लॉक नहीं है जहां पिछले वर्ष की तुलना में गन्ने का रकबा न बढ़ा हो। ऐसे में गन्ने की नई सर्वे नीति ने किसानों के सामने समस्या खड़ी कर दी है। कोटा निर्धारण में तीन साल की आपूर्ति देख कर इस बार किसान का बेसिक कोटा निर्धारित किया गया है। बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं, जिन्होंने इस बार अपना गन्ने का रकबा बढ़ा दिया था। अब बढ़े गन्ने को लेकर किसान परेशान हैं। पिछले दो वर्ष की तुलना में गन्ने की अधिक पैदावार ख़ुशी के बजाय परेशानी का सबब बनी हुई है।
जनपद की चार गन्ना समितियों के आंकड़ों पर गौर करें तो रामपुर में इस वर्ष का बेसिक कोटा है 72 लाख क्विंटल, जबकि गन्ने की पैदावार हुई है 89 लाख क्विंटल। इस वर्ष का कोटा और पैदावार दोनों ही पिछले सत्र से अधिक है। स्वार में इस वर्ष का कोटा 46 लाख क्विंटल है, जबकि इसके सापेक्ष पैदावार है 61 लाख क्विंटल। यहां पर पिछले सत्र का कोटा 37 लाख क्विंटल था। बिलासपुर में वर्ष 17-18 में कोटा मिला था 18.29 लाख क्विंटल, जबकि इस बार का कोटा है 21.67 लाख क्विंटल। इसके सापेक्ष यहां गन्ने की पैदावार इस वर्ष 31.22 लाख क्विंटल हुई है।
पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष किसानों ने काफी अधिक गन्ना पैदा किया है, जबकि मिलों का बेसिक कोटा उसको देखते हुए काफी कम है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि, मिलों को बेचने के बाद खेतों में शेष बचे गन्ने का किसान क्या करेगा। हालांकि गन्ना विभाग द्वारा सट्टा व्यवस्था बनाई गई है, जिसमें निर्धारित बेसिक कोटा से अधिक गन्ना आपूर्ति करने के इच्छुक लघु किसानों को विभाग द्वारा एक बॉन्ड भरवा कर गन्ना विभाग की संबंधित समिति या परिषद में जमा करने के बाद गन्ना लिया जा रहा है।
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