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सहारनपुर, 11 अप्रैल: सहारनपुर के 80 वर्षीय गन्ना किसान जयवीर को वह वक्त अच्छी तरह याद है जब उन्हें देश के लिए अन्न पैदा करके गर्व होता था लेकिन अब उनका कहना है कि केवल जय जवान का नारा रह गया है जबकि जय किसान नहीं रहा।
उन्होंने कहा, ‘‘देशवासियों के लिए अनाज पैदा करके हमारा सम्मान होता था और हम इसे अपनी जिम्मेदारी मानते थे।’’
सहारनपुर से 12 किलोमीटर दूर सरसीना गांव में उन्होंने कहा, ‘‘हमने ऐसा वक्त भी देखा है जब चौधरी देवी लाल जी (पूर्व उप प्रधानमंत्री) ने हमारे लिए पांच सितारा अशोक होटल के द्वार खोले।’’
उन्होंने कहा लेकिन अब बस जय जवान का नारा बचा है, जय किसान नहीं रहा।
देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के मशहूर नारे ‘जय जवान, जय किसान’ को याद करते हुए जयवीर ने कहा, ‘‘हाल के वर्षों में हमारी हालत भिखारियों जैसी हो गई है। अब जय किसान नहीं रहा, केवल जय जवान बचा है। हमारी हालत को देखकर हमारे बच्चे खेतीबाड़ी करने के लिए तैयार नहीं हैं। मेरी चिंता यह है कि हमारे मरने के बाद 130 करोड़ भारतीयों का पेट कौन भरेगा।’’
उनके बगल में खड़े उनके भाई एवं गन्ना किसान सुरेश त्यागी ने कहा कि उनके लिए जिंदगी आसान नहीं रही है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम भी एक लड़ाई लड़ रहे हैं। जिंदा रहने की लड़ाई, अपना परिवार चलाने की लड़ाई। क्यों हमारी जिंदगी मायने नहीं रखती?’’
जयवीर और सुरेश पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना क्षेत्र के तहत आने वाले सहारनपुर जिले में रह रहे सैकड़ों गन्ना किसानों में शामिल हैं।
आंकड़ों के अनुसार, भारत में उत्तर प्रदेश गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक
उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने की हर तरह की किस्म के लिए कीमतें तय कर दी है लेकिन चीनी मिल किसानों को भुगतान नहीं कर पा रहे है क्योंकि अत्यधिक उत्पादन के कारण चीनी की कीमतों में गिरावट आ गई है।
खबरों के अनुसार, बीते सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान करने का वादा किया था जो 10,000 करोड़ रुपये पहुंच गया है। लेकिन किसानों को इस पर संशय है और उनका मानना है कि यह चुनावों से पहले महज एक लोकलुभावन वादा हो सकता है।
इन गन्ना किसानों का कहना है कि वे यह देखने के बाद ही मतदान करेंगे कि किसने अपने चुनाव घोषणापत्र में किसान समर्थक एजेंडा शामिल किया है।
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