गाजियाबाद: भारतीय किसान संघ (भाकियू) ने उत्तर प्रदेश सरकार के मौजूदा बजट को किसान विरोधी और कार्पोरेट हितैषी बताया है। भाकियू ने कहा कि उत्तर प्रदेश का बजट किसानों के लिए एक नई बोतल में पुरानी शराब जैसा है। भाकियू के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि राज्य सरकार का यह बजट सरासर किसान विरोधी और कॉर्पोरेट के हितैषी है। उन्होंने कहा कि राज्य की लगभग 70% आबादी कृषि के माध्यम से अपनी आजीविका कमाती है, इसलिए हमें उम्मीद है कि राज्य सरकार किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों के उत्थान पर 30% बजट खर्च करेगी। लेकिन ऐसा लगता है, सरकार का ध्यान एक्सप्रेसवे के निर्माण पर ज्यादा है।
उन्होंने एक्सप्रेसवे के अपने पिछले अनुभव के बारे में कहा कि किसानों के लिए फायदेमंद साबित नहीं हुआ है। सरकारें भूमि का अधिग्रहण करती हैं, मुआवजे का भुगतान करती हैं और आगे बढ़ती हैं। वे न तो किसान के कौशल विकास में निवेश करते हैं और न ही वे एक्सप्रेस-वे के दोनों ओर कृषि-आधारित उद्योग विकसित करते हैं। पैसा मिल जाने के बाद किसानों के पैसे खर्च हो जाते हैं और वह सड़क पर आ जाता है। राज्य सरकार पुनर्वास के लिए नौकरी की गारंटी भी नहीं देती है।
मलिक ने आगे गन्ने के भाव को लेकर राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की और कहा कि सरकार किसानों की गन्ने के भाव बढ़ाए जाने की मांग को लंबे समय से नजरअंदाज कर रही है। उन्होंने कहा कि हम गन्ने का भाव प्रति क्विंटल 400 रुपए करने की मांग कर रहे हैं क्योंकि इसके इनपुट लागत में काफी वृद्धि हुई है जबकि सरकार हमें सिर्फ 315 रुपए प्रति क्विंटल भाव दे रही है। बजट से गन्ना किसान भी निराश है।
उन्होंने बजट में घोषित चीनी मिलों के विस्तार पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि चीनी मिलों का विस्तार केवल कुछ मिलों तक ही सीमित है। कई मिलें अभी भी राज्य सरकार की अनदेखी में फंसी हुई हैं। इनमें अलीगढ़ की साथा चीनी मिल और मुजफ्फरनगर की मोरना चीनी मिल शामिल हैं।
भाकियू के प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र यादव ने कहा कि बजट किसानों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया है। सरकार आवारा पशुओं की समस्या के लिए कोई ठोस उपाय नहीं कर रही है। आवारा पशुओं को पालने के लिए ₹ 30 रुपये प्रतिदिन देने की सरकारी योजना व्यवहारिक नहीं है। इसे बढ़ाकर 100 रुपए किया जाना चाहिए।
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