मुंबई : चीनी मंडी
केंद्र सरकार की ओर से संकट से बाहर निकलने के लिए पैकेज के रूप में उठाये गये कई उपायों के बावजूद देश का चीनी उद्योग सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों के माध्यम से गुजर रहा है। आज कई सारी समस्याओं का सामना उद्योग कर रहा है, उनमे मुख्य रूप से घरेलू मांग से अतिरिक्त चीनी उत्पादन प्रमुख समस्या बनी हुई है ।
चीनी उद्योग काफी हद तक इस बात से परिचित है कि, जैसे ही भारतीय चीनी क्षेत्र एक नए सत्र में कदम रखता है, वह अधिक निर्यात, घरेलू बाजार में मूल्य स्थिरता और किसानों को गन्ने के बकाया की निकासी के लिए तत्पर रहता है। किसानों के मुद्दों के साथ सीज़न शुरू हुआ, जिसमे एफआरपी को एक समय के भुगतान के साथ तय अवधि में निपटाने की बात आगे आई, इसके बाद मिलर्स द्वारा भी ‘एमएसपी’ को बढ़ाने की मांग की गई। दूसरी ओर, उद्योग नए बाजारों की खोज कर निर्यात को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहा है और वित्त और मूल्य संबंधी मुद्दों के समाधान की प्रतीक्षा में फंस गया है। निर्यात प्राप्ति मूल्य और बैंकों द्वारा किए गए चीनी के मूल्यांकन के बीच बड़े अंतर ने चीनी मिलों के निर्यात को रोक दिया था और उन पर क़र्ज़ का दबाव हल्कासा बढ़ गया है ।
ChiniMandi.com के साथ बात करते हुए, महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज़ फेडरेशन के प्रबंध निदेशक संजय खताल ने कहा की, मिलर्स को मूल्य और स्टॉक वैल्यूएशन असमानता से उत्पन्न लघु मार्जिन को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था, जिसके कारण निर्यात मुश्किल लग रहा था; फिर भी, इस मुद्दे को केंद्र सरकार के अधिकारियों, बैंकरों और मिलरों के साथ हाल की बैठक में हल किया गया है। इसलिए, मिलें अब निर्यात शुरू करने के लिए गति पर हैं। एमएसपी में बढ़ोतरी के संबंध में फेडरेशन आवश्यक कदम उठा रहा है। खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने भी अनुरोधों पर विचार किया है। यह सरकार की ओर से कार्रवाई के आह्वान का इंतजार करने का समय है। इस बीच, मिलर्स को निर्यातकों के संपर्क में रहना चाहिए और निर्यात की मात्रा तय करनी चाहिए। यदि मिलर्स इसे सावधानी से नहीं लेते हैं, तो चीनी उद्योग में उनका अस्तित्व बहुत मुश्किल साबित होगा।