चेन्नई : तमिलनाडु सरकार राज्य सलाहकार मूल्य (एसएपी) के बजाय राजस्व साझा फॉर्मूला (आरएसएफ) शुरू करने पर सोचविचार कर रही है, लेकिन गन्ना किसानों कहना कि, सरकार के इस कदम से उनका भविष्य धूमिल होता नजर आ रहा है।किसानों का कहना है कि,राज्य सरकार द्वारा लागू किए गए नए अनुबंध कानून में कानूनी संरक्षण की कमी मिलों के लिए फायदेमंद है, जो किसानों को समय पर भुगतान करने में हमेशा विफल रहती है।
चीनी मिलों के पास 2018-19 के सीजन का 346 करोड़ रुपये अब भी बकाया है, जिसमें सरकार और सहकारी मिलें भी पार्टियां हैं। किसानों ने निति आयोग की एक रिपोर्ट को खारिज कर दिया है,जिसमें दावा किया गया है कि तमिलनाडु सहित कुछ राज्यों में उचित और पारिश्रमिक मूल्य (एफआरपी) और इससे भी अधिक एसएपी के परिणामस्वरूप गन्ना किसान जादा फायदा कमा रहे हैं।निति आयोग और कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) का दावा कुछ और है, और किसान की स्थिति कुछ और हैं।
किसानों को राजस्व साझा फ़ॉर्मूला…
आरएसएफ (राजस्व साझा फ़ॉर्मूला ) को लागू करने के वाले राज्यों में महाराष्ट्र और कर्नाटक के बाद अब तमिलनाडु भी शामिल है।आरएसएफ की सिफारिश है कि,चीनी की बिक्री से उत्पन्न राजस्व में से 70% का हिस्सा और 75% हिस्सा अन्य उत्पादों की बिक्री से, जिसमें गुड़ भी शामिल है, किसानों को दिया जाए।किसान संगठनों को डर है की, मिलों द्वारा वास्तविक राजस्व उत्पन्न करने और रिकवरी रेट को गलत बताने के कारण किसानों के अंधेरे में रहने की संभावनाएं बहुत अधिक हैं।