मदुरै : अलंगनल्लूर में स्थित छह दशक पुरानी राष्ट्रीय सहकारी चीनी मिल ने 2019 में Covid-19 अवधि के दौरान घटते राजस्व के कारण अपना परिचालन बंद कर दिया था। प्रबंधन ने 76 कर्मचारियों को मिल की रखवाली करने का जिम्मा सौंपा हैं। इन 76 कर्मचारियों को दो साल से अधिक समय से वेतन नहीं मिला है।उन्हें उम्मीद थी कि मिल फिर से शुरू होगी और उनका वेतन भुगतान किया जाएगा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कर्मचारियों ने कहा कि, मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने अपने चुनाव अभियान में वादा किया था कि मिल को फिर से खोला जाएगा, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया।
द हिन्दू में प्रकाशित खबर के मुताबिक, उन्होंने कहा कि, कृषि मंत्री एम.आर.के. पन्नीरसेल्वम ने विधानसभा और पार्टी दोनों बैठकों में आश्वासन दिया कि, मिल को फिर से खोला जाएगा, लेकिन कई अभ्यावेदन के बावजूद उन्होंने इसके बारे में बात नहीं की। यह मिल राज्य की सबसे पुरानी मिलों में से एक है। 1966 में प्रति दिन 1,000 टन गन्ना पेराई क्षमता के साथ शुरू हुई थी। 1977 में पेराई क्षमता को 1,500 टन प्रति दिन तक बढ़ाने के लिए ₹ 2.50 करोड़ में अपग्रेड किया गया था। फिर 1989 में, इसे 7 करोड़ रुपये की लागत से 2,500 टन प्रति दिन पेराई क्षमता के साथ उन्नत किया गया था।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों ने कहा कि, 2009 से 2019 तक, मिल में पेराई किये गए गन्ने की मात्रा 1.25 करोड़ मीट्रिक टन से घटकर 60,352 मीट्रिक टन हो गई, जिसे 2019 में मिल बंद होने का मुख्य कारण बताया गया। गन्ने के पेराई में गिरावट का मुख्य कारण किसानों में गन्ने की कटाई को लेकर डर था, उन्हें डर था कि वे कोविड-19 जैसी अनिश्चित स्थिति के दौरान अपनी उपज बेच नहीं पाएंगे। चूंकि यह दक्षिणी जिलों में एकमात्र सहकारी मिल है, जो वाडीपट्टी, मेलूर, मदुरै उत्तर और दक्षिण, तिरुमंगलम, उसीलमपट्टी, डिंडीगुल, अरूपपुकोत्तई और तिरुचुली जैसे क्षेत्रों के किसानों की जरूरतों को पूरा करती है। मिल के बंद होने का असर हजारों गन्ना किसानों पर भी पड़ा है।
अधिकारियों ने बताया कि, 31 मार्च, 2023 को गणना के अनुसार मिल का नवीनतम शेयर पूंजी मूल्य ₹ 10.13 करोड़ था। सबसे अधिक शेयर मूल्य लगभग 27,000 किसानों के पास ₹ 9.63 करोड़ के साथ था, उसके बाद राज्य सरकार के पास ₹ 49.20 लाख के साथ था। अधिकारियों ने कहा, भले ही पिछले कुछ वर्षों में मिल का राजस्व कम हो गया था, लेकिन यह राज्य की महत्वपूर्ण मिलों में से एक है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि, 76 में से केवल मुट्ठी भर श्रमिकों को ही तंजावुर, मोहनूर और कल्लाकुरिची में गन्ना मिलों में मौसमी रूप से प्रतिनियुक्त किया गया था। मिल संचालन के दौरान विभिन्न कार्य करने वाले अन्य कर्मचारियों को मिल के सुरक्षा गार्ड के रूप में तैनात किया गया था। मिल के क्वार्टर में रहने वाले कर्मचारी पी. मुरुगन ने बताया कि, उन्हें 22 माह का वेतन मिलना बाकि है। उन्होंने कहा, केवल मेरी कमाई से ही मेरा पूरा परिवार चलता है और अब वेतन लंबित होने के कारण, मैं निजी ऋणदाताओं और रिश्तेदारों से लिए गए ऋण से ही अपना गुजारा कर रहा हूं।उन्होंने कहा, मैं न तो यह नौकरी छोड़ सकता हूं और न ही इससे भाग सकता हूं क्योंकि हमें अधिकारियों या मंत्री से कोई आश्वस्त जवाब नहीं मिलता है।
तमिलनाडु गन्ना किसान संघ के राज्य अध्यक्ष एन. पलानीसामी ने कहा, राज्य सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति ने निरीक्षण किया और अनुमान लगाया कि मिल को फिर से खोलने के लिए ₹ 27 करोड़ (मरम्मत के लिए ₹ 10 करोड़ और लंबित वेतन के भुगतान के लिए ₹ 17 करोड़) की आवश्यकता थी।