मक्का भारत में एक बड़ी व्यावसायिक फसल बनकर उभर रही है. खासकर इथेनॉल उत्पादन के लिए, जिसे पेट्रोल के साथ मिलाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, यह पोल्ट्री फीड उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। साल 2025-2026 तक पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य हासिल करना है तो मक्का उत्पादन बढ़ाने की जरूरत होगी। साल 2024-2025 में अकेले इथेनॉल उत्पादन का महत्वपूर्ण योगदान का अनुमान है। इसलिए किसानों को पैदावार बढ़ाना होगा. पैदावार बढ़ाने के लिए उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध करावाने होंगे। भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR) की ओर से पंचकूला (हरियाणा) में आयोजित फील्ड डे कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिकों ने यह बात कही।
कृषि विज्ञान केंद्र, पंचकूला (हरियाणा), कृषि विभाग और एमजी पेट्रोकेमिकल्स की मदद से पंचकूला जिले के डंडलावर गांव में आयोजित इस कार्यक्रम में “इथेनॉल उद्योगों के जलग्रहण क्षेत्रों में मक्का उत्पादन में वृद्धि” प्रोजेक्ट की जानकारी दी गई। जिसके तहत इथेनॉल उत्पादन के लिए मक्के का उत्पादन बढ़ाने पर काम किया जा रहा है। आईआईएमआर इस प्रोजेक्ट को लीड कर रहा है। इसके तहत गांवों में कार्यक्रम आयोजित करके किसानों को अच्छे बीज उपलब्ध करवाए जा रहे हैं और मक्के की अच्छी खेती करने की जानकारी दी जा रही है।
एफ्लाटॉक्सिन फ्री मक्का की जानकारी
कार्यक्रम की शुरुआत उन्नत मक्का खेती तकनीकों पर एक प्रजेंटेशन के साथ हुई, जिसमें उन्नत बीज किस्मों की बुवाई के लाभ बताए गए। किसानों को इथेनॉल और फीड इंडस्ट्री के लिए एफ्लाटॉक्सिन फ्री मक्का उत्पादन टेक्निकक की जानकारी दी गई। एफ्लाटॉक्सिन विषाक्त पदार्थ है जो मक्का में पाया जाता है। किसानों को बताया गया कि एफ्लाटॉक्सिन फ्री मक्का चाहिए तो बुवाई के वक्त स्वस्थ बीज होना चाहिए। इसके अलावा मक्के को सीधे मिट्टी या सड़क की बजाय सूखे तिरपाल पर सुखाएं. विशेषज्ञों ने इथेनॉल उत्पादन में मक्का की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला, इसके पर्यावरणीय लाभों पर जोर दिया। क्योंकि मक्का की खेती ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कमी ला सकती है। कार्यक्रम में जीरो टिलेज यानी बिना जुताई के खेती करने के फायदे गिनाए गए।
फायदे का सौदा है मक्का की खेती
प्रोजेक्ट से जुड़े वरिष्ठ मक्का वैज्ञानिक डॉ. एसएल जाट ने मक्का की बढ़ती मांग के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि इथेनॉल और पोल्ट्री फीड के लिए मक्के की मांग बढ़ने के कारण इसकी खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है। खासकर भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में। उन्होंने मक्का की खेती के उन्नत तरीकों पर भी जानकारी साझा की। एमजी पेट्रोकेमिकल्स इंडस्ट्रीज से जुड़े देवेंद्र ने खरीफ सीजन के दौरान किए गए फ्रंटलाइन प्रदर्शनों के लाभों पर प्रकाश डाला, जबकि हार्प केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड के पुष्पिंदर ने किसानों को इथेनॉल उद्योगों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए मक्का की खेती का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया।
मक्के की खेती में कम खर्च होता है पानी
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बीएस जाट, डॉ. रोमेन शर्मा, जय प्रकाश शर्मा, डॉ. गुरनाम सिंह और डॉ. राजेश लाठर ने कीट मैनेजमेंट, मिट्टी की सेहत, पोषक तत्वों का मैनेजमेंट और खेती के नए तौर तरीकों के बारे में जानकारी दी। अधिकांश कृषि वैज्ञानिकों ने अन्य फसलों के मुकाबले मक्का को पर्यावरण के लिए बेहतर बताया, क्योंकि इसमें पानी का खर्च बहुत कम होता है। इसलिए मक्का क्रॉप डायवर्सि्फिकेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। किसानों से मक्का उत्पादन बढ़ाने की अपील की गई, जिससे कि इथेनॉल उत्पादन और उसे पेट्रोल में मिलाने के लक्ष्य को समय रहते हासिल किया जा सके।