पंजाब में अब तक पराली जलाने के 9,247 मामले दाखिल

चंडीगढ़ : गेहूं के डंठल से बना ‘तुरदी’ (सूखा चारा) अपने पोषण मूल्य के कारण मवेशियों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है, लेकिन पंजाब में किसानों ने इस साल गेहूं की कटाई के बाद एक बार फिर से पराली जलाने का सहारा लिया है।6 अप्रैल से 15 मई तक, राज्य में 9,247 खेतों में आग लगने की सूचना मिली है। पिछले साल इसी अवधि के दौरान 14,117, जबकि 2021 में, 7,808 फील्ड फायर की सूचना मिली थी।

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, मोगा जिले (932) से सबसे अधिक आग लगने की सूचना मिली थी।उसके बाद गुरदासपुर (770), अमृतसर (710), फिरोजपुर (685), लुधियाना (624), संगरूर (614), बठिंडा (559), बरनाला (527), मुक्तसर (521), तरनतारन (413), फाजिल्का (412) , पटियाला (383), जालंधर (334), होशियारपुर (332) और कपूरथला (292) में घटनाएं घटी है।रूपनगर में आग की सबसे कम 11 संख्या दर्ज की हैं।इस सीजन में एक दिन में सबसे ज्यादा आग की वारदाते 11 मई (1,554) को दर्ज की गई थी। इसके बाद 6 मई (1, 221), 13 मई (1,113), 10 मई (1,019), 5 मई (892), 12 मई (752) और 8 मई (604) को हुई।

विशेषज्ञों का कहना है कि, किसान गेहूं की पराली नहीं बल्कि जड़ों के ऊपरी हिस्से को जला रहे हैं। चारा बनाने के बाद जड़ों के ऊपरी हिस्से का कुछ सेंटीमीटर हिस्सा खेत में छोड़ दिया जाता है और किसान उस हिस्से को आग लगा देते हैं और इस प्रक्रिया में मिट्टी को भी जला देते हैं।सरकार के थोड़े से दबाव से इस आग से आसानी से बचा जा सकता है। यह मिट्टी, खेत में कार्बनिक पदार्थ और मिट्टी के अनुकूल कई कीड़ों को जला देता है। इसके अलावा, यह उच्च मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और ब्लैक कार्बन पैदा करने के अलावा नाइट्रोजन और डायम्मोनियम फास्फेट (डीएपी) और पोटेशियम के नुकसान की ओर जाता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण होता है। यह फसल की उत्पादकता और मिट्टी की उर्वरता को भी प्रभावित करता है।

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