भारत में भी अब गन्ने की जगह हो सकती है चुकंदर की खेती….

कोयंबटूर: तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (TNAU) राज्य में गन्ने के विकल्प के रूप में चुकंदर की खेती करने की व्यवहार्यता का अध्ययन करने के लिए पूरी तरह तैयार है। TNAU उसी के लिए बेल्जियम स्थित फर्म सेसवेंडरहैवे के साथ सहयोग करेगा। TNAU के कुलपति एन कुमार ने कहा कि, बेल्जियम की फर्म ने चुकंदर की ऐसी किस्में विकसित की हैं, जिनकी खेती उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी की जा सकती है। सेसवेंडरहैवे फर्म हमें चुकंदर के बीज देगी और हम उन्हें कोयंबटूर, मदुरै, वैगई डैम, कदलुर, सिरुगामनी और मेलालाथुर में खेती करेंगे। परीक्षण के परिणामों के आधार पर, हम फसल को किसानों और फिर चीनी मिलों को सौपेंगे।

उन्होंने कहा कि, बेल्जियम की सेसवेंडरहैवे फर्म के प्रतिनिधि खेतों का निरीक्षण करने और कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए आयेंगें। कुमार ने कहा कि, वे दिसंबर में ट्रायल खेती शुरू करने और मार्च-अप्रैल तक फसल करने के लिए एक योजना बनाई है। गन्ना जबकि एक पानी से भरपूर फसल है, चुकंदर फसल को कम पानी की जरूरत होती है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत और ब्राजील को छोड़कर, दुनिया भर में चीनी का उत्पादन करने के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है। ग्लोबल एग्री सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड के अध्यक्ष गोकुल पटनायक ने कहा कि, 10 महीनों की गन्ना फसल की तुलना में सिर्फ चार से साढ़े चार महीनों में चुकंदर की कटाई की जा सकती है। इतना ही नही चुकंदर भी इथेनॉल का एक कुशल संसाधन है, जिसका उपयोग डीजल के साथ मिश्रण के लिए किया जा सकता है। विशेषज्ञों ने कहा कि, गन्ने की पैदावार लगभग 10 महीनों में एक हेक्टेयर से 100 टन हो सकती है, जबकि चुकंदर की पैदावार लगभग चार महीनों में 70 टन प्रति हेक्टेयर होती है।

वसंतरावदा शुगर इंस्टीट्यूट (पुणे) के महानिदेशक शिवाजीराव देशमुख ने कहा कि, वे पिछले 12 वर्षों से चुकंदर का अध्ययन कर रहे थे और उन्होंने 300 एकड़ में इसकी खेती की थी। क्योंकि यह एक सब्जी की फसल है, इसलिए इसे गन्ने से ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। हम किसानों को इसकी खेती के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे हैं।

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