कोल्हापुर : चीनीमंडी
किसान नेता और पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने आरोप लगाया है कि, चीनी उद्योग के बारे में केंद्र सरकार की गलत नीतियों के कारण ही चीनी उद्योग सहित गन्ना उत्पादकों को परेशानी हुई है। अब गन्ना उत्पादन लागत में वृद्धि के बावजूद इस साल सरकार द्वारा एफआरपी में कोई वृद्धी नहीं की गई है। अपने राजनैतिक फायदे के लिए भाजपा में शामिल हुई ‘शुगर लॉबी’ को बचाने के लिए ही सरकार ऐसे कदम उठा रही है।
शेट्टी ने जारी प्रेसनोट में कहा है की, राहुरी कृषि विश्वविद्यालय के अनुसार एक हेक्टेयर गन्ने के लिए रासायनिक उर्वरकों की लागत में 1556 रुपये प्रति हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। साथ ही जल सिंचन, बिजली, ईंधन, श्रम लागत, मशीनीकरण में भी भारी वृद्धि हुई है। फिर भी, कृषि आयोग ने इस साल एफआरपी नहीं बढाई है। यहां तक कि उत्पादन लागत में वृद्धि के साथ, चीनी की दरों में अभी वृद्धि नहीं हुई है। कृषि आयोग के अध्यक्ष विजय पाल शर्मा कहते हैं, पिछले सात वर्षों में गन्ने का उत्पादन सबसे अधिक हुआ है। 2016-17 में चीनी की दर प्रति क्विंटल 3609 रूपये थी और 2017-18 में 3183 रूपये तक पहुंची। भारत और थाईलैंड में गन्ने के उच्च उत्पादन के कारण वैश्विक बाजार में चीनी की कीमतें गिरने की संभावना है, इसलिए इस साल एफआरपी में वृद्धि नहीं हुई है।
किसान नेता पाशा पटेल को राज्य के कृषि मूल्य आयोग के अध्यक्ष के रूप में 2017 में चुना गया था। 2015-16 में राज्य सरकार ने गन्ने की प्रति हेक्टेयर 1 लाख 90 हजार 422 रुपये लागत आयोग को प्रस्तुत की है। लेकिन 2016-17 में गन्ने की उत्पादन लागत 35 हजार रूपये घटाकर 1 लाख 54 हजार 534 रुपये पेश की गई। इसका असर किसानों पर पडा है। दूसरी ओर, पड़ोसी राज्य कर्नाटक में 2015-16 की तुलना में 2016-17 में गन्ने की उत्पादन लागत में प्रति हेक्टेयर 32 हजार रूपये की वृद्धि की गयी, फिर महाराष्ट्र में इसे कम क्यों दिखाया गया है?
ब्राजील, पाकिस्तान से चीनी का आयात
शेट्टी ने आरोप लगाया कि, पिछले पांच वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने 6 हजार करोड़ से अधिकांश चीनी आयात की है। अधिकांश चीनी ब्राजील और पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश से भी आयात की गयी है। चीनी उद्योग के संबंध में केंद्र सरकार की गलत नीतियों का खामियाजा देश के लाखों किसानों को भुगतना पड़ रहा हैं।
यह न्यूज़ सुनने के लिए इमेज के निचे के बटन को दबाये.