उत्तर प्रदेश: अब आलू के छिलके से जैविक एथेनॉल का उत्पादन, आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ताओं ने किया कमाल

वाराणसी : बीएचयू के शोधकर्ताओं ने कमाल करके दिखाया है, उन्होंने आलू के छिलके से जैविक एथेनॉल का उत्पादन किया। केंद्र और राज्य सरकारे लगातार एथेनॉल का उत्पादन बढाकर आयात पेट्रोलियम उत्पादों पर से अपनी निर्भरता कम करने की कोशिशों में जुटी है। अब इस कोशिशों को आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ताओं ने एक कदम आगे बढ़ाने का काम किया है। अमर उजाला में प्रकाशित खबर के अनुसार, भारतीय तकनीकी संस्थान (बीएचयू) के कच्चे आलू के अवशेषों से जैविक एथेनॉल उत्पाद के लिए एक नवीन विधि की खोज की गई है। यह “अपशिष्ट से संपत्ति” की पहल न केवल खाद्य उत्पादों को कम करने के लिए एक मार्ग प्रस्तुत करता है, बल्कि भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता और सांस्कृतिक स्थिरता की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।

यह शोध डॉ.अभिषेक सुरेश धोबले, स्कूल ऑफ बायोकैमिकल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर, और एम.टेक.छात्र उन्नति गुप्ता द्वारा किया गया है, जो आलू के छिलके के अपशिष्ट का उपयोग जैविक एथेनॉल उत्पादन के लिए एक कच्चे माल के रूप में करने की संभावना की खोज कर रहे हैं। जैविक एथेनॉल, एक नवीकरणीय बायोफ्यूल, देश के कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने और स्वच्छ, टिकाऊ ऊर्जा विकल्पों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।डॉ.अभिषेक सुरेश धोबले ने बताया कि, भारत में औसतन 56 मिलियन टन आलू का उत्पादन होता है, जिसमें से लगभग 8-10% (लगभग 5 मिलियन टन) चिप्स, फ्राई और सुखाए हुए उत्पादों के रूप में प्रसंस्कृत किया जाता है। हालांकि, आलू उत्पादन में बाद की फसल में काफी हानि होती है, जो कि 20-25% (11-14 मिलियन टन) तक हो सकती है, जिसका मुख्य कारण अपर्याप्त भंडारण सुविधाएं, अव्यक्त परिवहन और गलत तरीके से हैंडलिंग करना है।

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