उत्तर प्रदेश: कानपुर IIT में गन्ने के छिलके से बनाये गये इलेक्ट्रोड से प्लास्टिक प्रदूषण घटाने में होगी मदद

कानपुर: कानपुर IIT में किये गये एक शोध के चलते प्रदूषण की बढ़ती समस्या को खत्म करने में गन्ना अब काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने संभावना दिखाई दे रही है। चिकित्सा से लेकर विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में प्रयोग होने वाले इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसर के लिए आईआईटी वैज्ञानिकों ने गन्ने के छिलके पर स्क्रीन प्रिंटेड इलेक्ट्रोड तैयार किया है। गन्ने के छिलके की सतह का प्रयोग किए जाने से यह पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल है। उसे 100 प्रतिशत प्रदूषण में कम करने वाला शोध करार दिया गया है। आईआईटी के शोध को भारत सरकार ने पेटेंट भी दिया है,अब निजी कंपनियों की मदद से गन्ने के छिलके से स्क्रीन प्रिंटेड इलेक्ट्रोड तैयार करने की तैयारी है।

जागरण में प्रकाशित खबर के मुताबिक, आईआईटी कानपुर के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सिद्धार्थ पाण्डा के साथ डॉ. नचिकेत आशीष गोखले और डॉ. चिरंजीवी श्रीनिवासराव वूसा ने अनुसंधान पूरा किया है। अभी तक इलेक्ट्रो केमिकल सेंसर में प्रयोग हो रहे स्क्रीन प्रिंटेड इलेक्ट्रोड के सबस्ट्रेट के तौर पर प्लास्टिक और सिरेमिक का प्रयोग किया जा रहा है। उससे होने वाले प्रदूषण को देखते हुए दुनिया में पर्यावरण अनुकूल इलेक्ट्रोड की जरूरत थी। प्रो. पाण्डा की टीम ने गन्ने के छिलके यानी ऊपरी सतह की मदद से स्क्रीन प्रिंटेड इलेक्ट्रोड तैयार किए हैं, जो इलेक्ट्रो केमिकल सेसिंग में पूरी तरह से सक्षम हैं।

खबर में आगे कहा गया है की, टीम ने गन्ने के छिलके के सबस्ट्रेट यानी इलेक्ट्रोड को ‘आधार सतह’ के तौर पर प्रयोग किया है। गन्ने के छिलके पर स्क्रीन प्रिंटेड इलेक्ट्रोड तैयार करने के बाद विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक सेंसर के साथ सफल प्रयोग किया गया है। शोध टीम के अनुसार गन्ने के छिलके को भविष्य में स्क्रीन प्रिंटेड इलेक्ट्रोड के लिए सबस्ट्रेट का स्थायी विकल्प बनाया जा सकता है। गन्ने की उपलब्धता पूरी दुनिया में प्रचुर मात्रा में है और हर साल उत्पादन हो रहा है। गन्ने के छिलके पर तैयार इलेक्ट्रोड की जांच की गई तो इसे 25 से 55 डिग्री तापमान पर उपयुक्त पाया गया है।

इसका प्रयोग सोना, चांदी या कार्बन इलेक्ट्रोड के लिए भी करके देखा गया है और नतीजे पूरी तरह से अनुकूल रहे हैं। इससे भविष्य में स्पेस टेक्नोलॉजी, मोबाइल फोन या अन्य उपकरणों में स्क्रीन प्रिंटेड इलेक्ट्रोड के तौर पर भी इसका प्रयोग किया जा सकेगा। ‘जागरण’ से बात करते हुए आईआईटी कानपुर प्रो. सिद्धार्थ पाण्डा ने कहा कि, गन्ने के छिलके की सतह का प्रयोग स्क्रीन प्रिंटेड इलेक्ट्रोड के विकास में किया गया है। गन्ने की उपलब्धता हमेशा रहने वाली है और खराब होने पर यह प्राकृतिक तौर पर अपने आप नष्ट हो जाएगा। इससे प्रदूषण की समस्या भी नहीं होगी।प्रयोगशाला परीक्षण के साथ यह भी पाया गया है कि इसका उत्पादन फैक्ट्री स्तर पर आसानी से किया जा सकता है।

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