लखनऊ : लोकसभा चुनाव का ऐलान होते ही उत्तर प्रदेश में गन्ने को लेकर सियासत तेज हुई है। सत्ताधारी पार्टी जहां चीनी उद्योग के लिए अच्छे कामों को गिना रही है, वही दूसरी ओर विपक्षी सपा और कांग्रेस बकाया भुगतान मुद्दा भुनाने की कोशिश कर रहे है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीती गन्ने के इर्दगिर्द ही घुमती है। स्थानीय निकाय चुनाव हो या फिर विधानसभा और लोकसभा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने का मुद्दा सबसे आगे होता है। गन्ना किसानों के लिए भाकियू पिछले 37 साल से लड़ रही है। गन्ना किसान राजनीतिक दलों के एजेंडे में शामिल हो गए। आरोप – प्रत्यारोपों के बीच गन्ना मूल्य और भुगतान की लड़ाई अब भी जारी है।
‘अमर उजाला’ में प्रकाशित खबर के अनुसार, सूबे में 121 चीनी मिल है। मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद मंडल के 13 जिलों के किसान 58 चीनी मिलों में गन्ना आपूर्ति करते हैं। सहारनपुर 08, मुजफ्फरनगर 08, शामली 03, मेरठ 06, बागपत 03 और बिजनौर में 10 चीनी मिल हैं। लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों ने किसानों के दरवाजे खटखटाने शुरू कर दिए हैं। एक तरफ भाजपा प्रत्याशी बढ़ाए गए गन्ना मूल्य का हवाला दे रहे हैं और दूसरी तरफ विपक्ष में सपा, बसपा और कांग्रेस समेत अन्य दलों के नेता गन्ना मूल्य और भुगतान को लेकर किसानों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं।