नयी दिल्ली, 22 जुलाई, केन्द्र सरकार किसानों को आर्थिक रुप से मज़बूत बनाने के लिए खेती में आने वाली लागत को घटा कर वित्तीय भार कम करने पर ज़ोर दे रही है वही उत्तर प्रदेश मे गन्ना किसान दावा कर रहे है की वे अपने हक़ के लिए तरस रहे है। उत्तर प्रदेश के राज्यसभा सांसद सुरेन्द्र सिंह ने प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि गन्ना किसानों की रहनुमा बनने वाली प्रदेश सरकार सूबे के गन्ना किसानों का 10 हज़ार करोड़ रुपया चीनी मिलों से दिलाने में नाकाम रही है। ऐसी सरकार को उखाड़ फेंकने की ज़रूरत है। नागर ने कहा कि गन्ना किसानों ने इस सरकार को इसलिए चुना था कि उनके अच्छे दिन आएँगे लेकिन किसानों के साथ उल्टा हुआ है। किसान आज अपने हक़ के लिये आंदोलन कर रहे है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।
नागर ने किसानों की बकाया राशि के साथ ब्याज की राशि देने की माँग करते हुए कहा कि बीते दिनों मैंने ये मुद्दा संसद में भी उठाया था लेकिन इसके बावजूद प्रदेश सरकार के कानों में जूँ तक नहीं रेंगी। नागर ने कहा कि 2018-19 में किसानों का चीनी मिलों पर तक़रीबन 10 हज़ार करोड़ रुपया बाक़ी है और इस रकम पर करीब ढाई हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का ब्याज बनता है। जिसे सरकार या तो चीनी मिलों से दिलाए या सरकारी ख़ज़ाने से दे लेकिन यथा संभव तुरन्त राशि दी जानी चाहिए।
नागर ने कहा कि दूसरों का पेट भरने वाला अन्नादाता आज खुद का पेट नहीं भर पा रहा, सरकारें मौन है। अगर समय रहते सरकारें नहीं चेती तो हमें बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होना पड़ेगा।”
नागर ने कहा कि सरकार को चाहिये कि चीनी मिलों के लिए उनकी तंगी के दौर में ख़र्चो की भरपाई के लिए आमदनी आधारित विकल्प तैयार करे और किसानों का बकाया जितना होता है उसकी राशि को फ़िक्स अमाउंट के रूप में सुरक्षित रखकर सिर्फ़ किसानों मे ही बाँटा जाए अन्य काम में चीनी मिले वो पैसा ख़र्च ना करे।
नागर ने कहा कि मै खुद पश्चिम यूपी का रहने वाला हूँ और मेरे यहाँ के किसान सबसे ज्यादा पीड़ित है। उत्तर प्रदेश का गन्ना बेल्ट कहे जाने वाले इस संभाग में ही क़रीब 40 से अधिक चीनी मिलों पर किसानो का करोड़ों रुपया बकाया है।
नागर मे कहा कि सरकार को स्पष्ट नीति बनाने की ज़रूरत है ताकि आगे से इस तरह की समस्या से गन्ना किसानों को दो चार न होना पड़े और चीनी मिलों को आर्थिक तंगी का दंश न झेलना पड़े।
नागर ने कहा कि गन्ना किसान और चीनी मिलें दोनों एक दूसरे की पूरक है और राष्ट्र विकास में दोनों की समानांतर भागीदारी है। इसलिेए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान कराने और गाँवों में रोज़गार के विकल्प बनाये रखने के लिए गन्ना किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन देने की ज़रूरत है और चीनी मिलों को आर्थिक संकट से उबारने के लिये वैकल्पिक श्रोत बढाने की आवश्यकता है तब ही देश के सदियों पुराने चीनी उद्योग से जुड़े रोज़गार और कारोबार को किसानों से जोड़कर आगे चालू रखा जा सकता है।
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