पुणे: वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट (VSI) द्वारा आयोजित तीसरा अंतरराष्ट्रीय चीनी सम्मेलन 12 से 14 जनवरी 2024 को पुणे में होगा। ‘चीनीमंडी’ इस सम्मेलन का मीडिया पार्टनर है। इस सम्मेलन में देश-विदेश से दो हजार से अधिक प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। इस सम्मेलन के माध्यम से ज्ञान, प्रौद्योगिकी और विचारों का आदान-प्रदान किया जाएगा। इसी पृष्ठभूमि में ‘वीएसआई’ के अध्यक्ष और सांसद शरद पवार ने ‘वीएसआई’ की स्थापना, इसके उद्देश्य, किसानों, चीनी उद्योग एवं देश के विकास में ‘वीएसआई’ का योगदान, अंतरराष्ट्रीय चीनी सम्मेलन आयोजन का उद्देश्य आदि के बारे में ‘चीनीमंडी’ को विशेष साक्षात्कार में विस्तार से जानकारी दी।
चीनी उद्योग की रोजगार के अवसर और किसानों का राजस्व बढ़ोतरी में बड़ी भूमिका…
सांसद पवार ने कहा कि, इस समय देश में लगभग 50 लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की फसल की खेती की जा रही है। महाराष्ट्र में यह क्षेत्रफल 14 लाख हेक्टेयर से भी अधिक है। देश में करीब 25 से 30 करोड़ किसान गन्ने की खेती पर निर्भर है। 528 चीनी मिलों में लगभग 5 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं। गन्ने की फसल की विशेषता यह है कि, यह अन्य फसलों की तुलना में जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक प्रतिरोधी है और अन्य फसलों की तुलना में अधिक रिटर्न देती है।अधिनियम में यह सुनिश्चित करने के प्रावधान हैं कि गन्ना उत्पादकों को इस फसल की कीमत कानून द्वारा तय की जाए। इन सभी कारकों के कारण, किसान उन स्थानों पर गन्ने की खेती करना पसंद करते हैं, जहाँ स्थायी जल आपूर्ति होती है।देश में किसानों को हर साल गन्ने के लिए 85 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान किया जाता है। भारत दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और हर साल लगभग 27 मिलियन टन चीनी की आवश्यकता होती है। आमतौर पर हर व्यक्ति को हर साल 20 किलो चीनी की जरूरत होती है। इन सभी कारणों ने चीनी उद्योग को किसानों, उपभोक्ताओं और देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण बना दिया है।
चीनी मिलें देश के ग्रामीण विकास का केंद्र बन गई है…
देश में चीनी उद्योग की पृष्ठभूमि के बारे में बात करते हुए श्री. पवार ने कहा कि, आजादी से पहले बंबई सरकार ने महाराष्ट्र में सूखा राहत के लिए भंडारदरा और भाटघर बांध बनाकर नहरें बनाई थी। लेकिन किसान इसका लाभ नहीं उठा सके। इस नहर के लाभ क्षेत्र में उद्यमी वालचंद हीराचंद, बाबासाहेब डहाणूकर, लक्ष्मणराव आपटे, शेठ करमशी सोमैया ने एक चीनी मिल की स्थापना की। आज़ादी के बाद सहकारी अधिनियम के तहत सहकारी समितियों के सहयोग से वर्ष 1948 में भारत में पहली सहकारी चीनी मिल स्थापित की गई। डॉ धनंजयराव गाडगीळ, कै. विट्ठलराव विखे-पाटील द्वारा स्थापित सहकारी मिल ग्रामीण विकास का केंद्र बन गई। मिल के चलते ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर लाभ मिलना शुरू हो गया।प्रवरानगर मिल की सफलता से महाराष्ट्र में सहकारी चीनी मिलों की मजबूत नींव रखी।
वसंतदादा पाटिल ने डेक्कन शुगर इंस्टीट्यूट की स्थापना की…
1961 के अधिकतम भूमि अधिनियम ने निजी मिलों को चलाना असंभव बना दिया। निजी मिलों को सहकारी मिलों में परिवर्तित कर दिया गया। इसके चलते 1970 के आसपास महाराष्ट्र में करीब 45 फैक्ट्रियां खड़ी हो गईं। हालाँकि, इन मिलों में प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी थी। देश में केवल राष्ट्रीय चीनी संस्थान (एनएसआई), कानपुर ही चीनी मिलों के लिए आवश्यक जनशक्ति को प्रशिक्षण दे रहा था। लेकिन चूंकि इस संस्था में प्रवेश सीमित थे, इसलिए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कै. वसंतदादा पाटिल ने पहल की और एनएसआई की तर्ज पर डेक्कन शुगर इंस्टीट्यूट की स्थापना की। केंद्र सरकार ने डेक्कन शुगर इंस्टीट्यूट में वही कोर्स लेने की अनुमति दे दी है, जो एनएसआई संस्थान में भी लिए जाते हैं। इस पहल से मिलों को कुशल जनशक्ति प्राप्त करना आसान हो गया। वर्ष 1986 में संस्थान में कृषि विभाग की स्थापना कर किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करने की सुविधा उपलब्ध कराई गई।
‘वीएसआई’ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली मान्यता…
सांसद पवार ने कहा कि, कै. वसंतदादा की मृत्यु के बाद इस संस्थान की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई और पिछले 34 वर्षों से मेरे कार्यकाल के दौरान संस्थान ने अनुसंधान, प्रशिक्षण, परामर्श और सेवा के सभी पहलुओं पर कड़ी मेहनत की है और आज संस्थान को एक प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में मान्यता मिली है। दुनिया के सभी शोध संस्थान की तर्ज पर चर्चा सत्र, सेमिनार, सम्मेलन हमारे संस्थान में भी आयोजित किये जा रहे हैं।’वीएसआई’ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अग्रणी संस्थान बनकर उभरा है। हमने वसंतदादा पाटिल की जन्म शताब्दी मनाने का फैसला किया। तदनुसार, 13 नवंबर 2016 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय चीनी सम्मेलन आयोजित किया गया।इस सम्मेलन में 22 देशों ने भाग लिया। सम्मेलन में लगभग 2000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदी ने किया।
इस वर्ष के सम्मेलन में विश्व के लगभग 26 देश भाग लेंगे…
उन्होंने कहा, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, लगभग 2 लाख किसानों ने गन्ना फसल प्रदर्शन और प्रदर्शनी का दौरा किया। इसके बाद हमने तय किया कि हर तीन साल में इस तरह का सम्मेलन आयोजित किया जाना चाहिए।तदनुसार 31 जनवरी से 2 फरवरी, 2020 तक दुसरे अंतरराष्ट्रीय चीनी सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन को चीनी उद्योग, विशेषज्ञों और किसानों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली।अगले साल 12 से 14 जनवरी, 2024 तक तीसरा अंतरराष्ट्रीय चीनी सम्मेलन होने जा रहा है। पिछले दो सम्मेलनों को मिली प्रतिक्रिया को देखते हुए इस तीसरे सम्मेलन का दायरा थोड़ा बड़ा है। प्रदर्शनी क्षेत्र का काफी विस्तार किया गया है। इस सम्मेलन में दुनिया के करीब 26 देश हिस्सा ले रहे है। इस सम्मेलन में विभिन्न देशों के लगभग 31 प्रसिद्ध वैज्ञानिक और भारत के 30 वैज्ञानिक मार्गदर्शन करेंगे। चीनी उद्योग में हो रहे नवाचार को करीब से जानने का एक अच्छा अवसर है। हमारा अनुमान है कि इस सम्मेलन में लगभग 2 लाख से भी जादा किसान आ सकते है।मै ‘चीनी मंडी’ के माध्यम से देश के किसान, महिला, युवाओं और कृषि से सभी लोगों को इस सम्मेलन का हिस्सा बनने की अपील करता हूँ।