कोल्हापुर जिले के चीनी मिलों ने गन्ना किसानों को एफआरपी दि लेकिन एफआरपी के कानून का किसी ने भी पालन नहीं किया। एफआरपी अधिक १०० रूपये तुरंत इस सूत्रनुसार सभी मिलों ने सीज़न के शुरुवात के समय (१५ दिसंबर तक) हप्ता दिया। उसके बाद का पहला बिल २५०० के अनुसार और अंतर निकाल कर एफआरपी के अनुसार दिया गया। लेकिन अभी तक मिलों ने एफआरपी के बाद प्रति टन १०० रूपयों का बील और उसके आगे का प्रति टन १०० रुपयों का नाम भी निकला नहीं है। गन्ना उत्पादक इस आश्वासित प्रति टन २०० रुपयों के प्रतीक्षा में है।
क्या तय हुआ था?
सीज़न के प्रारंभ में महाराष्ट्र के मिल मालिकों को गन्ना की कमी का डर था। इसमें ही कर्नाटक में मिले एक महीना पहले ही चालू होने की वजह से सीमाभाग में कर्नाटक के मीलों ने गन्ने खेतों में ही तीन हजार का हप्ता देकर गन्ना खरीद लिया। इसलिए एफआरपी से ज्यादा कुछ भी नहीं देंगे ऐसे बोलने वाले मिल मालिक एफआरपी अधिक १०० रुपये तुरंत और १०० रूपये दो महीने बाद इस स्वयंघोषित दर पर पालकमंत्री के साक्ष में फॉर्म्युला पर आ गये। आगे कुछ तीन हजार का हप्ता दिया। लेकिन एफआरपी प्रति टन २५०० रुपये हप्ता देने का सामूहिक निर्णय मिल मालिकों ने लिया। इस के बाद भी कुछ कारखानों के बिल अभी तक बाकी है।
‘अंकुश’ उच्च न्यायालय में
२५ दिसंबर के बाद निकाले गये गन्ने की एफआरपी बाकि रह गयी इसलिए ‘अंकुश’व्दारा दत्त शिरोल मिल विरुद्ध शिकायत की गयी। उनका कुछ प्रतिसाद ना मिलने से उच्च न्यायालय में याचिका दर्ज की थीं। उसके बाद न्यायालय ने १५ दिन में चीनी देने का आदेश चीनी आयुक्त को दिया। आयुक्त ने कारवाई नहीं की इसलिए १६ मार्च से आंदोलन किया। इस आंदोलन के बाद ५०% से कम एफआरपी देने वाले कोल्हापुर जिले की तीन और सांगली जिले की दो ऐसे पांच मीलों के विरुद्ध आर.आर.सी. कारवाई का आदेश दिया। और बाकि मीलों ने २३ मार्च तक बकाया एफआरपी अधिक १५% ब्याज देने का आदेश दिया। इस में दोनों जिले की मीलों ने ३०० करोड़ के बिल दे दिये। लेकिन ब्याज नहीं दिया। वापस ११ जून को चीनी आयुक्त कार्यालय पर जाने के बाद दस दिनों में राज्य के एफआरपी देने वाली ११६ मीलों को बिल देने के लिए मजबूर करेंगे ऐसा बताया गया। एफआरपी दिए ७१ मीलों की १५%ब्याज से होने वाली रकम देने का आदेश आयुक्त ने सहसंचालक को दिया।
अब बारी बकाया ब्याज की… !
कोई भी मिल एफआरपी के कानून का पालन नहीं करती। क्यूंकि १ तारीख को निकाले गये गन्ने का बिल १४ तारीख के अंदर खाते पर जमा होना चाहिए लेकिन मीलों ने क्लबिंग करके बिल देने की वजह से खाते पर रकम जमा होने को २८ दिन लगेंगे ऐसा कहा। इसलिए सभी मिले १५% ब्याज की कराधान कर सकती है। २९ जून को बकाया बिल के १५% के अनुसार होनेवाली रकम निकालने के लिए चीनी सहसंचालकों ने लेखा परीक्षक को आदेश दे दिए, ३० जुलाई तक यह रकम बताने का आदेश है ऐसा आंदोलन ‘अंकूश’ के धनाजी चुड़मुंगे इन्होने बताया। महाराष्ट्र की सभी मिले ब्याज के लिए पात्र है और ब्याज की रकम ५०० करोड़ तक है। महाराष्ट्र की लोकमंगल शुगर और लोकमंगल अॅग्रो इन दो ही मीलों ने ब्याज रकम चीनी संचालक को बताई है। यह रकम ९ करोड़ रुपये है।