नई दिल्ली : भारत का पडोसी मुल्क श्रीलंका इस वक़्त आर्थिक संकट के चलते डूबने की कगार पर है। वर्षों के संचित उधार, रिकॉर्ड मुद्रास्फीति, विदेशी मुद्रा की कमी, महामारी के कारण मांग में भारी गिरावट और कथित सरकारी कुप्रबंधन के कारण अरबों का कर्ज ने श्रीलंका को न केवल एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट में घसीटा है, साथ ही एक बड़े राजनीतिक उथल-पुथल की तरफ धकेला है। राष्ट्रीय आय से अधिक राष्ट्रीय व्यय और निर्यात से अधिक आयात के साथ, श्रीलंका जुड़वां घाटे वाली अर्थव्यवस्था का एक उत्कृष्ट उदाहरण बन गया है। श्रीलंका ने संकट से बचने के लिए एशियाई विकास बैंक, भारत और चीन से ऋण की मांग की है।
ईंधन, आवश्यक वस्तुओं और बिजली की भारी कमी के बीच लोग अपनी सरकार के विरोध में सड़कों पर उतरे हैं। इस बीच, समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, सत्तारूढ़ गठबंधन ने संसद में बहुमत खो दिया। विपक्ष ने राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के एक प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिन्होंने हिंसक विरोध के बीच प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के मंत्रिमंडल के 26 मंत्रियों के इस्तीफे के बाद सोमवार को ‘एकता सरकार’ बनाने का आह्वान किया था। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने सोमवार को पद छोड़ने से इनकार कर दिया था, लेकिन कहा था कि वह उस पार्टी को सरकार सौंपने के लिए तैयार हैं, जिसके पास संसद में 113 सीटें हैं।देश का आर्थिक-राजनीतिक संकट लगातार बढ़ रहा है, और पाकिस्तान की तरह यहां भी राजनितिक गहमागहमी बढ़ने की संभावना है।