नई दिल्ली : चीनी मंडी
अधिशेष चीनी की समस्या से निपटने के लिए चीनी निर्यात को बढ़ावा और किसानों के करोड़ो का बकाया भुगतान हो सके इसलिए केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते इस साल के दूसरे राहत पैकेज की घोषणा की, लेकिन, फिर भी चीनी निर्यात निति कारगर साबित होते हुए नही दिखाई दे रही है।
उत्तर प्रदेश के हजारों गन्ना किसानों में से 2 अक्टूबर को दिल्ली में प्रवेश करने से रोका गया था। किसानों के पास सरकार से नाखुश होने के अनेक कारण है। उत्तर प्रदेश की कई चीनी मिलें किसानों का 12,988 करोड़ रुपये देना बाकि है, लेकिन इसमें मिलों को दोष देना उचित नही है। अधिशेष उत्पादन और कम कीमतों ने चीनी उद्योग में तरलता संकट पैदा किया है। सरकार द्वारा चीनी उद्योग को राहत प्रदान करने के लिए आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीईए) द्वारा और एक पैकेज मुहैया कराया। यह एक अच्छा कदम है, लेकिन यह काम नहीं कर सकता है।
सबसे पहले देखते है पैकेज का विवरण…
इस पैकेज में दो घटक हैं, 2018-19 सीजन में 1,875 करोड़ रुपये के चीनी निर्यात की सुविधा के लिए आंतरिक परिवहन के लिए सहायता और 4,163 करोड़ रुपये गन्ना क्रशिंग के लिए प्रति क्विंटल 13.88 रूपये भुगतान शामिल है । इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) के अनुमानों के मुताबिक, इस साल चीनी उत्पादन 31.5 मिलियन टन से बढ़कर 35.5 मिलियन टन हो जाएगा। ‘आईएसएमए’ के अनुसार 2017-18 में चीनी की अनुमानित घरेलू खपत 25 मिलियन टन तक है ।
अधिशेष खत्म करने के लिए निर्यात का जवाब नहीं हो सकता…
अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमत घरेलू कीमतों से भी कम है, और मिलों को चीनी निर्यात के लिए नए घोषित पैकेज के प्रोत्साहन के बाद भी निर्यात विकल्प को आकर्षक बनाने की संभावना नहीं है। इंटरनेशनल शुगर एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय चीनी की कीमत दस साल के सबसे निचले स्तर पर है। भारतीय रुपये में अंतरराष्ट्रीय मूल्य लगभग प्रति क्विंटल 1,700-1800 रूपये है। घरेलू राष्ट्रीय कमोडिटी एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) पर कीमत प्रति क्विंटल 3,100 रूपये यानि के काफी अधिक है। वास्तव में, चीनी चीनी की कीमतों में गिरावट चीनी उद्योग में मौजूदा अतिरिक्त आपूर्ति के कारणों में से एक है। पिछले दो वर्षों में चीनी के निर्यात में काफी कमी आई है।
किसानों का गुस्सा कम होने की सम्भावना काफी कम…
इस साल की शुरुआत में, सरकार ने निर्यात के लिए 2 मिलियन टन चीनी न्यूनतम संकेतक निर्यात (एमआईईक्यू) कोटा आवंटित किया। ‘एमआईईक्यू’ के तहत चीनी की निर्धारित मात्रा को निर्यात करने के लिए प्रत्येक चीनी मिल को कोटा अनिवार्य किया गया था। ‘आईएसएमए’ के संजय बनर्जी के अनुसार, घरेलू बाजार की तुलना में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चीनी की कम कीमतों के कारण लक्ष्य के 30% चीनी भी निर्यात होने की सम्भावना नहीं है। इस संदर्भ को देखते हुए, चीनी उद्योग में निरंतर संकट को हल करने में नवीनतम नीति बहुत उपयोगी नहीं हो सकती है और, बदले में, इसका मतलब है कि, बकाया भुगतान की वजह से किसान गुस्से में बने रहेंगे।