मुंबई : चीनी मंडी
वेस्ट इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (विस्मा) ने आने वाले चीनी मौसम में किसानों को निष्पक्ष और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) का एकमुश्त राशि में भुगतान करने के बजाय दो किस्तों में भुगतान करने की छूट के लिए राज्य सरकार से संपर्क किया है। 2017-18 के चीनी मौसम की एफआरपी अभी भी लंबित है, कुछ चीनी मिलें गन्ना भुगतान करने में असक्षम होने के कारण उनकी संपत्ति जब्त की गई है।
चीनी मिलें झेल रही आर्थिक दबाव
महाराष्ट्र में लगभग 51 चीनी मिलें अभी भी किसानों का 437 करोड़ रुपये देय है और कम से कम 22 मिलों को कम से कम राजस्व और वसूली प्रमाणपत्र (आरआरसी) नोटिस जारी किए गए हैं। मिलों ने सहकार मंत्रालय और किसानों के दबाव से 391 करोड़ रुपये का भुगतान किया है, लेकिन चार चीनी मिले अभी तक भुगतान करने में असफल रही है। एक बार एकल एफआरपी भुगतान करने के लिए मिलें बाध्यकारी है, लेकिन चीनी मिलों के पास आवश्यक धनराशि नहीं है और बाजार में चीनी कीमते लगातार फिसलने से वो चीनी बेच नही पा रहे है।
14 दिनों में एफआरपी भुगतान मुश्किल
‘विस्मा’ के अध्यक्ष बी.बी. थोम्बरे के अनुसार, एफआरपी में वृद्धि और अगले सीजन में चीनी के अनुमानित रिकॉर्ड उत्पादन की वजह से चीनी मिलों का एक बार फिर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है। यदि चीनी मिलें समय पर चीनी निर्यात करने में असमर्थ रही, तो उनके लिए किसानों को गन्ना भुगतान करना मुश्किल होगा। गन्ने की कटाई के बाद 14 दिनों में चीनी मिलों को एफआरपी का भुगतान करना अनिवार्य है, लेकिन आर्थिक संकट के चलते किसानों को एफआरपी भुगतान करना मुश्किल है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रति किलो 35 रुपये चाहिए
चीनी क्षेत्र के विशेषज्ञों के अनुसार, गुजरात फार्मूला एफआरपी भुगतान करने के लिए आदर्श है । पहले चरण में, किसानों को अग्रिम दिया जाता है, दूसरी किश्त सीजन की शुरुआत से तीन महीने के भीतर और चीनी मौसम के अंत में किसानों को अंतिम भुगतान मिलता है। उनके अनुसार, चीनी का न्यूनतम समर्थन मूल्य २९ रुपये प्रति किलो से बढ़ाकर 35 रुपये प्रति किलो कर दिया जाना चाहिए, ताकि चीनी मिलों को किसानों का भुगतान करने में आसानी हो।
गन्ना की खेती के क्षेत्र में 11.62 लाख हेक्टर
2018-19 के चीनी मौसम में, गन्ना की खेती क्षेत्र 11.62 लाख हेक्टर तक बढ़ गया है, 150 लाख टन गन्ने से 11.30% फीसदी रिकवरी के साथ 107 लाख टन चीनी उत्पादन होने की उम्मीद है। 10% फीसदी रिकवरी पर केंद्र सरकार ने एफआरपी दर में 275 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की है और औसत एफआरपी 2,786 रुपये प्रति टन की सीमा में होने की उम्मीद है। माल और सेवाओं कर (जीएसटी) की कटौती के बाद, चीनी की कीमतों में 3,000 रुपये प्रति टन होने की उम्मीद है।
अगस्त में, चीनी की कीमतें 2,500 रुपये प्रति टन तक गिर गईं, जिससे अधिकांश कारखानों को वित्तीय तनाव में डाल दिया गया। अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार का अगर जायजा लिया जाए, तो चीनी की कीमतें बढ़ने की सम्भावना न के बराबर है ।
उत्पादन और चीनी की कीमतों में लगभग प्रति टन 400 रूपये अंतर
थोम्बरे के अनुसार, उत्पादन और चीनी की कीमतों में लगभग प्रति टन 400 रूपये के अंतर के कारण, एफआरपी भुगतान अभी भी लंबित हैं। उन्होंने कहा कि गुजरात फार्मूला के अनुसार तीन चरणों में एफआरपी भुगतान करने के लिए गन्ना नियंत्रण अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिए। मोलासिस पर परिवहन कर 1 रुपये प्रति टन से 500 रुपये प्रति टन कर दिया गया है और इसे हटा दिया जाना चाहिए।
अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर से शुरू होने वाले चीनी सीजन के पहले तीन महीनों के लिए, महाराष्ट्र में मिलों को केवल कच्ची चीनी का उत्पादन करने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप कुछ 30-40 लाख टन कच्चे चीनी का उत्पादन होगा। अमेरिका और चीन के बीच वर्तमान में चल रहा ट्रेड वॉर ध्यान में लिया जाए तो आगे जाकर भारत को कच्चे चीनी निर्यात के लिए बड़ा मौका मिलने की काफी गुंजाईश है ।